एक रोज़ तो वो भी सोचेगी,
एक शक़स था पागल पागल सा,
पर बातें ठीक ही करता था.
दरिया की तरहा वो तेज़ ना था,
बारिश की तरहा चुप रहता था.
जो उसको बेहद चाहता था,
ताने भी उसके सहता था.
एक रोज़ तो वो भी सोचेगी,
क्यूँ जीते जी वो दूर हुआ,
किस बात ने उसको मार दिया,
किस वजह ने उसको दूर किया.
एक रोज़ तो वो भी सोचेगी.....
एक रोज़ तो वो भी सोचेगी.....
mashallah! kya khoob likha hai janab..
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